मूवी रिव्यू : बोल (Movie Review :BOL)
मूवीः बोल
कलाकार : आतिफ असलम , हुमैमा मल्लिक , शफाकत चीमा , मंजर सेहबई , जैब रहमानी , माहिरा खान
गीत : इमरान रजा , साजिद अली
संगीत : आतिफ असलम , साजिद अली
सेंसर सर्टिफिकेट : यू / ए
अवधि : 156 मिनट
रेटिंग :
आतंकवाद के मुद्दे पर खुदा के लिए जैसी बेहतरीन फिल्म बना चुके पाकिस्तानी डायरेक्टर शोएब मंसूर अपनी नई फिल्म बोल के साथ सबके सामने हैं। यह फिल्म ऐसे सब्जेक्ट पर है , जिसे पाक में बनाकर रिलीज करना हर किसी के बूते की बात नहीं। बेटे की चाह में 14 बच्चों को पैदा करने वाले कट्टर धार्मिक प्रवृति के हकीम साहब अपने घर कम पढ़ी - लिखी लड़कियों का मेला लगा लेते हैं। अपनी नई फिल्म बोल में शोएब ने एक सवाल उठाने की सार्थक कोशिश की है। इसमें शुरू से आखिर तक यही संदेश देने की कोशिश की गई है कि आप औलाद की सही परवरिश नहीं कर सकते तो उसे जन्म देना भी उतना बड़ा गुनाह है , जितना किसी की हत्या करना। इस फिल्म को दुनिया के कई प्रतिष्ठित अवॉर्ड मिल चुके हैं।
कहानी : इस फिल्म की कहानी एक हकीम साहब की फैमिली की है। कट्टर धार्मिक विचारों वाले हकीम साहब को एक लड़के की चाहत है , लेकिन हर बार घर में लड़की ही जन्म लेती है। एक के बाद एक हकीम साहब के घर में 14 बच्चों जन्म लेते हैं , जिनमें 7 बच्चे जिंदा रहते हैं। हकीम साहब की 14 वीं औलाद सैफुद्दीन होता है , जो न तो लड़की है और न ही लड़का। लाहौर में हकीम साहब की फैमिली गरीबी में घिरती चली जाती है , क्योंकि शहर में डॉक्टरों की तादाद बढ़ने लगती है।
हकीम साहब का धंधा मंदा पड़ जाता है और घर में खाने के लाले पड़ जाते हैं। हकीम साहब के गुस्से की मार हर बार उनकी बेगम और बेटियों पर पड़ती है। उनकी बड़ी बेटी जैनब ( हुमैमा मल्लिक ) जरूर अपने पिता का खुलकर विरोध करती है। हकीम साहब जब भी जब भी अल्लाह का नाम लेकर अपने किसी गुनाह को छुपाने की कोशिश करते वह अपने तर्क से उन्हें सच्चाई से रूबरू कराती।
एक्टिंग : बाप के हर गलत काम का खुलकर विरोध करने वाली बड़ी बेटी जैनब के रोल में हुमैमा मल्लिक के काम की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। वहीं , कट्टरवादी पिता हकीम साहब की भूमिका में मंजर सेहबई अपने रोल में ऐसे डूब गए हैं कि फिल्म खत्म होने के बाद दर्शक उन्हें किसी विलेन से भी ज्यादा खूंखार मानने लगते हैं।
निर्देशन : शोएब ने अपनी बात को बड़े दमदार ढंग से कहा है। भले ही फिल्म की लंबाई कुछ ज्यादा है , लेकिन शोएब की कहानी को बयां करने का अंदाज शुरू से अंत तक बांधे रखता है। फिल्म का क्लाइमेक्स झकझोर देने वाला है। शोएब ने फिल्म में कई ऐसे सवाल उठाए हैं , जिन पर अब सोचना जरूरी है। लड़कियों को पढ़ाने की बजाएं घर में कैद करके रखना , घरेलू हिंसा , अशिक्षा और धार्मिक कट्टरता के चलते आबादी के लगातार बढ़ने की समस्या को निर्देशक ने गजब ढंग से पेश किया है।
क्यों देखें : यकीनन बोल एक लाजवाब फिल्म है। अगर आप अच्छी और मेसेज देने वाली फिल्मों के शौकीन हैं , तो इस फिल्म को फैमिली के साथ देखने जाएं। हां , सिर्फ मौज - मस्ती या टाइमपास करने की चाह में थिएटर का रुख करने वालों को शोएब के यह बोल कड़वे लग सकते हैं।
कलाकार : आतिफ असलम , हुमैमा मल्लिक , शफाकत चीमा , मंजर सेहबई , जैब रहमानी , माहिरा खान
स्क्रिप्ट , स्टोरी , डायलॉग : शोएब मंसूर
डायरेक्टरः शोएब मंसूर गीत : इमरान रजा , साजिद अली
संगीत : आतिफ असलम , साजिद अली
सेंसर सर्टिफिकेट : यू / ए
अवधि : 156 मिनट
रेटिंग :
आतंकवाद के मुद्दे पर खुदा के लिए जैसी बेहतरीन फिल्म बना चुके पाकिस्तानी डायरेक्टर शोएब मंसूर अपनी नई फिल्म बोल के साथ सबके सामने हैं। यह फिल्म ऐसे सब्जेक्ट पर है , जिसे पाक में बनाकर रिलीज करना हर किसी के बूते की बात नहीं। बेटे की चाह में 14 बच्चों को पैदा करने वाले कट्टर धार्मिक प्रवृति के हकीम साहब अपने घर कम पढ़ी - लिखी लड़कियों का मेला लगा लेते हैं। अपनी नई फिल्म बोल में शोएब ने एक सवाल उठाने की सार्थक कोशिश की है। इसमें शुरू से आखिर तक यही संदेश देने की कोशिश की गई है कि आप औलाद की सही परवरिश नहीं कर सकते तो उसे जन्म देना भी उतना बड़ा गुनाह है , जितना किसी की हत्या करना। इस फिल्म को दुनिया के कई प्रतिष्ठित अवॉर्ड मिल चुके हैं।
कहानी : इस फिल्म की कहानी एक हकीम साहब की फैमिली की है। कट्टर धार्मिक विचारों वाले हकीम साहब को एक लड़के की चाहत है , लेकिन हर बार घर में लड़की ही जन्म लेती है। एक के बाद एक हकीम साहब के घर में 14 बच्चों जन्म लेते हैं , जिनमें 7 बच्चे जिंदा रहते हैं। हकीम साहब की 14 वीं औलाद सैफुद्दीन होता है , जो न तो लड़की है और न ही लड़का। लाहौर में हकीम साहब की फैमिली गरीबी में घिरती चली जाती है , क्योंकि शहर में डॉक्टरों की तादाद बढ़ने लगती है।
हकीम साहब का धंधा मंदा पड़ जाता है और घर में खाने के लाले पड़ जाते हैं। हकीम साहब के गुस्से की मार हर बार उनकी बेगम और बेटियों पर पड़ती है। उनकी बड़ी बेटी जैनब ( हुमैमा मल्लिक ) जरूर अपने पिता का खुलकर विरोध करती है। हकीम साहब जब भी जब भी अल्लाह का नाम लेकर अपने किसी गुनाह को छुपाने की कोशिश करते वह अपने तर्क से उन्हें सच्चाई से रूबरू कराती।
एक्टिंग : बाप के हर गलत काम का खुलकर विरोध करने वाली बड़ी बेटी जैनब के रोल में हुमैमा मल्लिक के काम की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। वहीं , कट्टरवादी पिता हकीम साहब की भूमिका में मंजर सेहबई अपने रोल में ऐसे डूब गए हैं कि फिल्म खत्म होने के बाद दर्शक उन्हें किसी विलेन से भी ज्यादा खूंखार मानने लगते हैं।
निर्देशन : शोएब ने अपनी बात को बड़े दमदार ढंग से कहा है। भले ही फिल्म की लंबाई कुछ ज्यादा है , लेकिन शोएब की कहानी को बयां करने का अंदाज शुरू से अंत तक बांधे रखता है। फिल्म का क्लाइमेक्स झकझोर देने वाला है। शोएब ने फिल्म में कई ऐसे सवाल उठाए हैं , जिन पर अब सोचना जरूरी है। लड़कियों को पढ़ाने की बजाएं घर में कैद करके रखना , घरेलू हिंसा , अशिक्षा और धार्मिक कट्टरता के चलते आबादी के लगातार बढ़ने की समस्या को निर्देशक ने गजब ढंग से पेश किया है।
क्यों देखें : यकीनन बोल एक लाजवाब फिल्म है। अगर आप अच्छी और मेसेज देने वाली फिल्मों के शौकीन हैं , तो इस फिल्म को फैमिली के साथ देखने जाएं। हां , सिर्फ मौज - मस्ती या टाइमपास करने की चाह में थिएटर का रुख करने वालों को शोएब के यह बोल कड़वे लग सकते हैं।
BOl Movie Poster |
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